रामकुमार चतुर्वेदी चंचल हिंदी कविता के सबसे लोकप्रिय और अग्रणी कवियों एवं गीतकारों में एक अलग पहचान रखते हैं । साठ वर्षों तक समूचे देश के बड़े कवि सम्मेलनों में काव्यपाठ करने के साथ ही उन्होंने लालकिले के मंच से दर्जनों बार काव्यपाठ किया। आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित गीतों के माध्यम से उनकी कविता की अनुगूंज उन नगरों और कस्बों में भी पहुँची जहाँ वे कभी काव्यपाठ के लिए नहीं जा सके ।
ओज और श्रृंगार दोनों ही पर उन्होंने सामान अधिकार से कवितायें लिखीं इसी लिए लोग उन्हें “अंगार और श्रृंगार के कवि” एवं “ओज और सोज़ के कवि” जैसी उपाधियों से सम्बोधित करते रहे हैं ।
कवि रामकुमार चतुर्वेदी ऐसे प्रबुद्ध, सजग, राष्ट्रचेता रचनाकार रहे जिन्होंने निजी सुख-दुख से अलग मानवीय पीड़ाओं, परदुःख कातरता, कचोटनेवाली स्थितियों, संघर्ष करते मनुष्य और विडम्बनाशील स्थितियों-परिस्थितियों, अहमान्यताओं को चुनौतियाँ देने आदि को अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। प्रेम की कोमल अनुभूतियों को अपनी कलम से उकेरने वाले इस रचनाकार ने यद्यपि कई अनूठे गीत रचे हैं, मगर उनका मूल स्वर राष्ट्रीय चेतना तथा मानवीय वेदना का ही रहा है।
रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल' ने कविता का दामन अपनी किशोर अवस्था में ही थाम लिया था। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन से प्रेरणा प्राप्त कर के काय रचना के क्षेत्र में कदम रखा था। जाहिर है इस आंदोलन के कवि के भीतर राष्ट्रीय जागरण, स्वदेशी को अपनाने, नवयुवकों में प्राण फेंकने और स्वतंत्रता का शंखनाद गुंजाने की भावना थी। वीर रस की ओजस्वी रचनाएँ लिखने के बावजूद वे प्रेम और समर्पण की रचनाएँ लिखने में भी तल्लीन रहे। यों स्वभावतः वे प्रगतिशील रहे, जिसकी बानगी उनकी अनेक रचनाओं में मिलती है।
रामकुमार चतुर्वेदी को गीत का कवि कहें, विचारवान कवि कहें अथवा ओज का कवि रहें, यह तय कर पाना भी मुश्किल है। प्रेम के गीत लिखने के बावजूद वे लिजलिजी भावुकता के रचनाकार नहीं रहे, ओज की कविताएँ रचने के बावजूद वे मानवतावादी रहे और विचारशील रचनाओं में उनकी संवेदनशीलता सिर चढ़कर बोलती रही।
अभिव्यक्ति की सफाई और भाषा की सादगी के मायने में रामकुमार चतुर्वेदी हिन्दी के उन महत्वपूर्ण कवियों की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने अपने श्रोताओं को भाषाई जंजाल में अथवा वादों में उलझाए बिना, ऊपर से सरल लगने वाली रचनाओं में भी संवेदना और माधुर्य का मोहक संसार रचा है। उनकी कविता का प्राण है आंतरिक रूप से परिपूर्ण अनुभूति को एक ऐसे अंदाज़ में पेश करना जो सभी को अपनी लगे।
इस संदर्भ में हिंदी में ऐतिहासिक उपन्यास लेखन के शलाका पुरुष वृन्दावन लाल वर्मा की यह टिप्पणी अत्यन्त सटीक है-“चतुर्वेदी जी वादों के जाल से बहुत दूर है। वह कविता को ‘जीवन' के लिए समझते है। जीवन और उसकी उन्मुक्तता पर घायल करने वाले अंकुश नहीं लगाते। उनकी भाषा और भावों की सीधी चुभन, चुस्ती और ओजस्विता का मैं कायल हूँ। उनकी बात समझने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। इनकी कविताओं में मनोहर लय हैं। मुझ सरीखे पाठकों को लयवाली कविताएँ, जिनमें लय के ऊपर कुछ और भी हो, प्रभावशाली लगती है। कछ मुक्तक भी हैं, पर वे कान में रमने की और जीभ पर बसने की शक्ति रखते हैं, क्योंकि इनके मुक्तकों में भी लय है।''
पराधीन भारत के एक संभ्रांत सनातन वैष्णव परिवार में 8 अक्टूबर 1926 को श्री राम कुमार चतुर्वेदी का जन्म मुंगावली तहसील (वर्तमान जिला गुना म .प्र) में हुआ जहां उनके पिता पंडित साहूकार चतुर्वेदी तत्कालीन सिंधिया स्टेट में तहसीलदार थे |
निराकार ब्रम्ह के उपासक पिता और रामानुज परम्परा में रची बसी माँ के बच्चों को धार्मिक और आध्यात्मिक संस्कार घर मे ही मिले । जहां पिता हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में शिक्षित थे वहीं मां ब्रिजभाषा में कवित्त कहने में सिद्धहस्ता (और नाना स्वामी हरि प्रपन्नाचार्य, रामानुज परंपरा के उद्भट विद्वान)। अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर गंभीर माँ अपने रौबदार अधिकारी पति के दौरे और स्थानांतरण से सदैव विचलित रहती थी। उन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए ग्वालियर में बसने का निर्णय लिया। "चंचल" जी की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गोरखी विद्यालय लश्कर में हुई। उच्चतर माध्यमिक शिक्षा जीवाजी राव इंटर कॉलेज ग्वालियर में हुई। यहीं पढ़ते हुए 1942 के आंदोलन से प्रभावित होकर कविता लिखना शुरू किया ।
ग्वालियर जहां एक तरफ सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था वहीं देश की बदलती राजनैतिक परिस्थिति की धड़कन भी यहां स्पष्ट सुनाई देती थी। इंटर की पढ़ाई पूरी कर स्नातक की पढ़ाई तत्कालीन विक्टोरिया कॉलेज से करते हुए ही वे देश के प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में छपने लगे थे।
विक्टोरिया कॉलेज में ही वीरेंद्र मिश्र, रामकुमार चतुर्वेदी "चंचल " और अटल बिहारी वाजपेयी की त्रयी चर्चित हुई और राष्ट्रीय स्तर के कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति नियमित होती गयी। विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर उस समय साहित्य की पाठशाला था जहां हिन्दी विभाग में डॉ. शिव मंगल सिंह "सुमन " विराजमान थे तो उर्दू विभाग में प्रो. जाँ निसार अख्तर। गुरुजनों के स्नेह ने इनकी साहित्यिक प्रतिभा को तराशा।
"चंचल" जी ने ग्वालियर छोड़ा 1947 में जब उन्होंने दिल्ली विश्विद्यालय में हिन्दी एम. ए. में प्रवेश लिया और एक स्थानीय समाचार पत्र के सह संपादक का कार्य शुरू किया। परंतु भारत विभाजन के बाद भड़के दंगों से पढाई बाधित हुई, तो ग्वालियर वापसी हुई। 1950 में आगरा विश्विद्यालय से हिंदी में एम. ए. की डिग्री ली।
मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग में सहायक प्राध्यापक, प्राध्यापक एवं प्राचार्य पद पर पदस्थ रहे ।
विक्रम विश्वविद्यालय और जीवाजी विश्विद्यालय की अनेक समितियों के सदस्य रहे ।
रेलवे हिंदी भाषा समिति के सदस्य रहे ।
भारतीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक निधि शिवपुरी (INTACH) के सहायक संयोजक रहे ।
साहित्य शिरोमणि
भारत भाषा भूषण
अक्षर आदित्य सम्मान
(संपादक शेरजंग गर्ग )
धर्मयुग ,साप्ताहिक हिंदुस्तान ,दिनमान ,सारिका ,कादम्बिनी जैसी हिन्दी की तत्कालीन प्रतिनिधि पत्रिकाओं ,समाचार पत्रों एवं काव्य संकलनों में कविता ,आलेख संस्मरणों का प्रकाशन
आकाशवाणी और दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से वार्ता और कविताओं का प्रसारण :
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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