सो नहीं जाना
अभी मेरी कहानी चल रही है।
काल की बहती हवा में
छाँह आँचल की हटाकर,
मत बुझा जाना प्रणय की
आरती जो जल रही है!
भाग्य के नभ में
अँधेरा ही अँधेरा रह न सकता,
है छिटकने को,
घटा में चाँदनी जो पल रही है।
तुम मिलीं मुझको
कि मेरा हौसला बढ़ने लगा है,
बेबसी सारी ढुलकते
आँसुओं में ढल रही है।
है किया तुम पर
अटल विश्वास मैंने उस जगत में
साँस अपनी ही कि जिसमें
ज़िन्दगी को छल रही है!
मौन सो जानाकि मेरी
बीन के जब तार टूटें,
पर अभी तो बीन है,
मैं हूँ, रवानी चल रही है!
सो नहीं जाना अभी
मेरी कहानी चल रही है।
मस्त बहारों का राजा हूँ, मैं हूँ फूल गुलाब का
पूरे चौक दूब के ऊपर जाने वाली रात ने
चूम लिए वे मोती आती हुई सुबह की वात ने
कोयल ने मंगल गाए जब मैं मुस्काया डाल पर
ऊषा ने कुमकुम भल डाली मेरे कोमल गाल पर
मुजरा करके बुलबुल बोली बड़ी अदा में झूमकर
‘कबसे इन्तज़ार करती थी बाँदी यहाँ जनाब का
मस्त बहारों का राजा हूँ, मैं हूँ फूल गुलाब का
बँद छुए जो मेरे उर को वह केसरिया नीर है।
जिस धरती पर मैं हँसता हूँ, वह धरती कश्मीर है।
मेरे साथ बहे जो झरना, वह झेलम से कम नहीं
मेरे चरणों पर जो बिखरे, मोती हैं, शबनम नहीं
मुझे देखकर शरमाते हैं सुन्दर फूल ‘निशात' के
मेरी गन्ध उमड़कर बहती जैसे वेग चिनाब का
मस्त बहारों का राजा हूँ, मैं हूँ फूल गुलाब का
मैं क्या महक गया, मधुवन में कलियाँ मुस्काने लगीं
रंग-बिरंगे पर फड़काकर सब चिड़ियाँ गाने लगीं
रवि की मृदुल सुनहरी किरणें नाचीं मुझको घेरकर
सौरभमई हवा ले आई सौ-सौ भौरें टेरकर
लजवन्ती तितलियाँ नशे में झूम लिपट मुझसे गईं
जो सबको दीवाना कर दे, मैं हूँ जाम शराब का
मस्त बहारों का राजा हूँ, मैं हूँ फूल गुलाब का
हरे-हरे पातों की शैया पर मेरा विश्राम है।
मैं हूँ आज जवान कि कल की चिन्ता का क्या काम हैं?
हम जितने भी फूल सभी तो माटी के श्रृंगार हैं।
मैं सबसे अनमोल इसी से काँटे पहरेदार हैं।
जीवन का उन्माद समय के कीटों से डरता नहीं
मैं सबसे रंगीन पृष्ठ हूँ छवि की खुली किताब का
मस्त बहारों का राजा हूँ, मैं हूँ फूल गुलाब का
जो अपनी तसवीर बनाई,
वह तसवीर तुम्हारी निकली !
जब जब अपना चित्र बनाया ,
तब तब ध्यान तुम्हारा आया !
मन में कोंध गयी बिजली सी ,
छवि का इंद्रधनुष मुस्काया !
सुख की एक घटा सी छाई ,
भींग गया जीवन आँगन सा,
घूम गयी कूंची दीवानी हर रेखा मतवाली निकली !
जो अपनी तसवीर बनाई,
वह तसवीर तुम्हारी निकली !
मेरा रूप तुम्हारा निकला ,
मेरा रंग तुम्हारा निकला ,
जो अपनी मुद्रा समझी थी,
वह तो ढंग तुम्हारा निकला !
धूप और छाया का मिश्रण ,
यौवन का प्रतिबिम्ब बन गया
होश समझ बैठा था जिसको,
वह रंगीन खुमारी निकली!
जो अपनी तसवीर बनाई,
वह तसवीर तुम्हारी निकली !
मैंने बार बार झुंझलाकर
रंग बदले आकृतियां बदलीं,
जो नव आकृतियां अंकित कीं -
वे भी प्राण तुम्हारी निकलीं !
अपनी प्यास दिखाने मैंने
रेगिस्तान बनाना चाहा ,
पर तसवीर हुई जब पूरी,
फागुन की फुलवारी निकली !
जो अपनी तसवीर बनाई,
वह तसवीर तुम्हारी निकली !
तुम से भिन्न कहाँ जग मेरा ?
तुम से भिन्न कहाँ गति मेरी ?
तुम से भिन्न स्वयं को समझा,
बहक गई कितनी मति मेरी !
मेरी शक्ति तुम्हीं से संचित ,
मेरी कला तुम्हीं से प्रेरित ,
जिसको अपनी जय समझा,
था वह तो तुम से हारी निकली!
जो अपनी तसवीर बनाई,
वह तसवीर तुम्हारी निकली !
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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