गगन में दमकते करोड़ों सितारे,
घड़ी भर चमककर छिपेंगे बिचारे;
रहा घूम कोई, रहा टूट कोई,
किसे लोचनों का सितारा समझ लॅू॔?
किसे ज़िन्दगी का सहारा समझलॅू॔?
जलधि में कई द्वीप जो दिख रहे हैं,
सभी काल की धार से कट रहे हैं।
यहाँ भी हिलोरें, वहाँ भी हिलोरें,
बतादो, कहाँ मैं किनारा समझलॅू॔?
किसे ज़िन्दगी का सहारा समझलॅू॔?
अभी तृप्ति के पल, अभी प्यास के क्षण,
अभी अश्रु के तो अभी हास के क्षण!
मिला साथ विष का, सुधा का निमन्त्रण,
मुझे आज किसने पुकारा समझलॅू॔ ?
किसे ज़िन्दगी का सहारा समझलॅू॔ ?
अभी फूलमाला, अभी शूलमाला,
अभी स्वर्ग, नन्दन, अभी नर्क-ज्वाला,
अभी डोलियाँ हैं, अभी अर्थियाँ हैं,
बता दो, कहाँ मैं गुजारा समझलॅू॔?
किसे ज़िन्दगी का सहारा समझलॅू॔?
धरा घूमती है, गगन उड़ रहा है,
न जाने किधर यह जलधि बढ़ रहा है।
मुझे छोड़कर साँस तक जा रही हैं,
बता दो, किसे मैं दुबारा समझ लॅू॔?
किसे ज़िन्दगी का सहारा समझ लॅू॔?
उदास पथ निहारते हुए समय निकल गया।
गगन सहन न कर सका
विदग्ध भूमि की व्यथा,
पपीहरा पुकारने लगा
कि छा गई घटा।
उधर लगी मधुर झरन
इधर हुए सजल नयन,
विफल तुम्हें पुकारते हुए समय निकल गया।
समुद्र क्षार था, परन्तु
चाँद माँगने लगा;
लहर उठी, परन्तु
चाँद दूर भागने लगा।
हजार बार सिर धुना,
हजार बार चुप हुआ,
कि भूल को सुधारते हुए समय निकल गया।
न छाँह सत्य की मिली,
मगर न स्वप्न कम हुए,
हजार बार मृग बढ़ा,
हजार बार भ्रम हुए।
न मान नीर का घटे,
न शीश प्यास का झुके,
सदा यही विचारते हुए समय निकल गया।
अनन्त दाह प्राण का
अभिन्न मीत हो गया,
हरेक अश्रु प्यार का
पुनीत गीत हो गया।
हरेक राग चाहता रहा
कि तुम सुनो, मगर
सितार ही सँवारते हुए समय निकल गया।
बाहुओं में भर रहा हूँ मैं हिलोरों की रवानी,
है हिलोरों से बहुत मिलती हुई मेरी जवानी!
जन्म है उठती लहर-सा, है मरण गिरती लहर-सा,
जिन्दगी है जन्म से लेकर मरण तक की कहानी!
चूमने दो ओठ लहरों के मुझे निःशङ्क होकर,
डूबना ही इष्ट हो जब तो सहारा कौन माँगे ?
प्यार जब मँझधार से हो तो किनारा कौन माँगे?
श्याम मेघों से घिरा नक्षत्र-विहगों का बसेरा,
ऑधियों ने डाल रक्खा है क्षितिज पर घोर घेरा!
जिस तरह से भग्न अन्तर में उमड़ती है निराशा,
ठीक वैसे ही उमड़ता आ रहा नभ में अँधेरा।
जबकि चाहे प्राण बरसाती अँधेरे में भटकना,
पथ-प्रदर्शन के लिए तो ध्रुव-सितारा कौन माँगे?
प्यार जब मँझधार से हो तो किनारा कौन माँगे?
जिन्दगी का दीप लहरों पर सदा बहता रहा है,
निज हृदय से ही हृदय की बात यह कहता रहा है!
डगमगाती ज्योति में विश्वास जीवन के सँजोए
मौन जलकर स्नेह का अभिशाप यह सहता रहा है!
जब मरण की आँधियों से प्यार इसको हो गया है,
ओट पाने के लिए आँचल तुम्हारा कौन माँगे?
प्यार जब मँझधार से हो तो किनारा कौन माँगे?
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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