बहुत अच्छा किया, पथ का मोड़ आया
वृथा से नेह-नाते तोड़ आया
कुसुम है तू, हँसी तेरी नियति है।
न कर चिन्ता कि क्या इतिहास होगा
बनेगा हार, वेणी में गुंथेगा
मुकुट में या पगों में वास होगा
लपट हो या कि बर्फीली हवा हो
सदा तेरे अधर पर हास होगा
अगर रस-गंध है तेरे हृदय में
जहाँ तू है वहाँ मधुमास होगा
रखा था क्या कटली डालियों में?
थिरकती तितलियों की तालियों में?
सुरक्षा थी न फूलों की जहाँ पर
किया अच्छा, चमन को छोड़ आया
बहुत अच्छा किया पथ मोड़ आया
चमन को छोड़कर जब तू चला था
बता मुझको कि किसका दिल हिला था?
लता का झूमना, गाना मधुप का
वही सदियों पुराना सिलसिला था
प्रणय की रीति कब, किसने निभाई?
यहाँ पाखण्ड की ही है दुहाई
दिखेगी भीड़ यों तो हर डगर पर
अकेलापन मगर सबकी सचाई
न जाने क्यों तुझे प्यारी बहुत थी
गगरिया याद की भारी बहुत थी
बड़ा अच्छा किया तूने कि उसको
समय की सीढ़ियों पर फोड़ आया
बहुत अच्छा किया, पथ मोड़ आया
जहाँ चन्दा, वहीं पर चाँदनी है।
जहाँ वीणा वहीं पर रागिनी है।
जहाँ है फूल, खुश्बू भी वहीं है।
जहाँ घन है, वहीं पर दामिनी है।
बड़ी अनमोल तेरी वेदना है।
वही देती निरन्तर प्रेरणा है।
जहाँ तप है वहीं पर सिद्धि भी है।
तुझे किसका सहारा देखना है।
ढलेंगे अश्रु तेरे रागिनी में
ढलेगी धूप शीतल चाँदनी में
बहुत अच्छा किया अपना दुपट्टा,
कला के छोर से तू जोड़ आया
बहुत अच्छा किया, पथ मोड़ आया
ज़िन्दगी अपनी कटी सामान्य लोगों में,
क्या भला करते किसी दरबार की बातें ?
लोग थे शौकीन शबनम में नहाने के,
और हम करते रहे अंगार की बातें !
दर्द में डूबी हुई पगडण्डियाँ देखीं,
हसरतों के खून से सड़कें नहाई थीं।
हर तरफ सौ-सौ अभावों के निमन्त्रण थे,
हर दिशा में शृंखलाएँ झनझाई थी।
थी कहाँ छुट्टी दुखों की पाठशाला से
जो कि हम करते किसी त्यौहार की बातें ?
शीश पर तपता गगन,
तपती धरा नीचे,
यह सुलगती-सी कथा अपने सफ़र की है।
प्यास में भी सिर झुकाकर जल नहीं माँगा,
सिर्फ यह गरिमा पपीहे के अधर की है।
किस तरह छूते घटाओं के सघन जूड़े,
किस तरह करते किसी बौछार की बातें ?
स्वप्न की रंगीनियों में डूबते कैसे ?
आँख के आगे ज़माने की सचाई थी।
फूल देखें या कि उस बारूद को देखें?
जो चमन में मालियों ने ही बिछाई थी!
क्यारियों से जब धुएँ की गन्ध आती हो
किस तरह भौरे करें गूंजार की बातें ?
राह में पनघट कई हमने निहारे हैं,
हर जगह रीते घड़ों की ही बरातें थीं।
बिद्ध थे पनिहारियों के पाँव काँटों में,
गर्म ओठों पर सिसकती सर्द बातें थीं।
पायलें सिर धुन रही हों जबकि पाँवों में,
कान तब कैसे सुनें झंकार की बातें ?
आदमी के आँसुओं पर थी नजर अपनी,
क्या गुलाबों से बनी जंजीर में बँधते?
सभ्यता ही जब बबूलों में भटकती हो
क्या किसी चम्पा-चमेली के गले लगते?
तितलियों के पर जहाँ नीलाम होते हों
कौन सोचेगा वहाँ शृंगार की बातें ?
लोग चन्दन और रोली से सजे-सँवरे,
भाल पर अपने रही है देश की माटी!
उम्र लागों की कटी मधु जोड़ने में ही,
दर्द ले हमने सदा हँ वेदना बाँटी ।
स्वर्ग के सोपान खोजे जा रहे हैं जब,
लिख रहे हैं हम धरा के प्यार की बातें!
गीत में भरकर जलधि का ज्वार लाया हूँ,
छन्द में तूफान की हुँकार लाया हूँ,
शारदा के कण्ठ को अनुभव नया होगा,
गूँथ फूलों की जगह अंगार लाया हूँ!
ओस की बूंदें बहुत सुकुमार होती है,
किन्तु, उन पर लोग रखकर पाँव चलते हैं,
इसलिए चिनगारियाँ मैंने बिछाई हैं
लोग जिनसे दग्ध होकर पथ बदलते हैं!
कल्पनाओं की कहूँ क्या बात दुनिया से,
सत्य पर जिसको नहीं विश्वास होता है!
हो रहा सम्मान चाँदी और लोहे का,
आदमी के दर्द का उपहास होता है!
ठीक है, भाई, कि यह विज्ञान का युग है,
अर्थ इसका क्या कलाओं को गिराना है?
क्या हृदय का स्थान भी मस्तिष्क ले लेगा?
डूबने का अर्थ भी क्या तैर जाना है?
भावना का मोल क्या कुछ भी नहीं होगा?
आदमी से श्रेष्ठ रुपया और आना है?
चाँद-तारों की दिशा में दौड़ने वालों!
भूमि को क्या सिर्फ मरघट ही बनाना है?
रूप दिखता है तुम्हें विकराल यन्त्रों में,
नाश में ही सृष्टि का श्रृंगार दिखता है;
थैलियों का शब्द ही संगीत लगता है,
क्रूर सैनिक सन्धियों में प्यार दिखता है।
तो सुनो, संहार की जय बोलने वालों!
आदमी पाषाण बनकर जी नहीं सकता!
चन्द्रमा को राहु चाहे दो घड़ी ग्रस ले,
पर सुधाकर की सुधा वह पी नहीं सकता!
छूटकर बारूद तोपों से उड़े, लेकिन,
वह सदा हरियालियों पर छा नहीं सकती;
आदमी की साँस है मधुगन्ध की भूखी,
'गैस' उसको चार दिन भी भा नहीं सकती!
उग नहीं सकती कभी संगीन खेतों में,
बाल गेहूँ की वहाँ तो मुस्कराएगी;
बाँसुरी पर फन पटक ले कालिया जी भर,
बाँसुरी ही अन्त में उसको नचाएगी!
धूप में जी भर भटक लो, शक्ति है जब तक,
जब थकोगे याद वट की छाँह आएगी;
पूतना विष का भले उपहार दे जाए,
दूध तो, लेकिन, यशोदा ही पिलाएगी!
एक दिन विज्ञान के रथ को लहू धोकर
आदमी उसको कला के द्वार लाएगा,
सूर्य तब आनन्द से कंचन बिखेरेगा,
चन्द्रमा जी खोलकर अमृत लुटाएगा!
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