काँटे फाड़ रहे हैं दामन, कलियाँ कौन चुनेगा?
इस आपाधापी के युग में कविता कौन सुनेगा?
चाँद और तारे आकर्षक हैं पहले जैसे ही,
अब उन तक मानव जाएगा अणु चालित यानों पर।
पारिजात हों या परियाँ हों लाख स्वर्ग में लेकिन,
कौन वहाँ तक चढ़े शब्द या स्वर के सोपानों पर? ।
सुर-नर-मुनि जब वस्त्र-त्याग की मुद्रा में बैठे हैं
रे कबीर! तू झीनी-झीनी चादर व्यर्थ बुनेगा!
इस आपाधापी के युग में कविता कौन सुनेगा?
फीका हुआ गुलाब, चमेली है सहमी-सहमी-सी,
इन सब पर कोई बारूदी घटा घिरी आती है।
भौरों की गुंजार एक सन्नाटे ने छीनी है,
उपवन है खामोश, गन्ध भी डरी-डरी आती है!
झंझाओं के केश दिशाओं में जब बिखर रहे हों,
तब तितली, किसलय, कोकिल की भाषा कौन गुनेगा?
इस आपाधापी के युग में कविता कौन सुनेगा?
मुखर हुआ कोलाहल मोटर, रेल, वायुयानों का,
पनघट जाती हुई वधू की पायल डूब गई है।
प्राणहीन त्यौहार कि मौसम रंगहीन लगते हैं,
चकित खड़ी है मौत, ज़िन्दगी खुद से ऊब गई है।
अर्थ चक्र में हम जीवन का अर्थ गॅ॔वा बैठे हैं, |
युग अभाव का है, भावों का सिक्का नहीं भुनेगा!
इस आपाधापी के युग में कविता कौन सुनेगा?
ज्योति-पुत्र बन गए मुसाहिब अन्धकार के घर में,
धर्म, ज्ञान, विज्ञान, कला की निष्फल हुई तपस्या!
मूल्यवान बनने के क्रम में मूल्य सभी खोए हैं,
मुश्किल को हल करने वाले खुद बन गए समस्या!
धरा-मेरु जब डोल रहे हों, शेषनाग विचलित हो,
तानसेन की मधुर तान पर माथा कौन धुनेगा!
इस आपाधापी के युग में कविता कौन सुनेगा?
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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