दिए को लजाकर बुझाया गया है,
शलभ मुस्कराकर बुलाया गया है।
अँधेरी निशा है, अँधेरी अलक है,
अलक से निशा को लजाया गया है।
अमावस गगन में ठगी-सी खड़ी है,
नया चाँद भू पर उगाया गया है।
नगों से जड़ी मुद्रिकाएँ दमकतीं,
कि मन तारकों को लुभाया गया है!
महकता वसन है, महकती जवानी,
चमन के पवन को झुमाया गया है।
अरुण लोचनों में लगा श्याम अंजन,
उषा को तिमिर में डुबाया गया है!
सुरा के बिना, प्यालियों के बिना ही
नशा आज मुझको कराया गया है!
तुम्हारे कहीं चुभ न जाएँ सुमन ये
इन्हें सेज पर क्यों बिछाया गया है?
अमरता खड़ी पास ही हाथ जोड़े,
प्रथम प्यार में जग भुलाया गया है।
मिलन की निशा भी अनोखी निशा है,
धरा पर गगन को झुकाया गया है!
जिसका कि छल परिणाम हो, विश्वास हो धिक्कार है।
जिसमें पराजय की कथा, इतिहास को धिक्कार है।
धिक्कार उस तकदीर को जिसमें लिखी हों ठोकरें
जो सिर झुकाने पर बुझे, उस प्यास को धिक्कार है।
हो बेसुरी जिसकी लहर, झनकार का क्या मोल है?
जो बेअसर हो, उस नयन-जलधार का क्या मोल है?
जो चन्द्रमा जैसा दिखे, पर राहु बन करके ग्रसे
उस रूप का क्या मोल है? उस प्यार को क्या मोल है?
संघर्ष से हो भय जिसे, यौवन भला किस काम का
गरजे, मगर बरसे नहीं, सावन भला किस काम का
किस काम को वह स्वप्न है जो सत्य से वंदित न हो
जो मौत पर हावी न हो, जीवन भला किस काम का
जो प्रेरणा से हीन हो, उस प्रीति से क्या लाभ है।
जो भावना से हीन हो उस मीत से क्या लाभ है।
क्या लाभ है उस साँस से जो वायु को सौरभ न दे
आँसू न जिस पर मुग्ध हों, उस गीत से क्या लाभ है।
यदि स्नेहमय बाती नहीं, दीपक जलाना व्यर्थ है।
उन्माद मंज़िल का नहीं, तो पग बढ़ाना व्यर्थ है।
सोए हुए जागें नहीं तो भैरवी बेकार है।
प्यासी धरा पर ओस की बूंदें गिराना व्यर्थ है।
इन्सान है जो दे सुधा, विष की सुराही ले सके
है फूल पूजा का कि जो सिर पर तबाही ले सके
कविता वही जो धूल का अभिषेक चन्दन से करे
कवि है वही जो रोशनी देकर सियाही ले सके
दानी जिसके पीछे दौड़े, उसको सच्चा याचक समझो,
जिसके स्वर पर लुट-जाय घटा, केवल उसको चातक समझो,
वरदानों के पीछे-पीछे जो दौड़ रहे, भिखमंगे है॔।
वरदान चले जिसके पीछे केवल उसको साधक समझो।
जिसको अपना भी ध्यान न हो, केवल उसको ध्यानी समझो,
प्राणों के तार हिलाए जो, सच्चे कवि की वाणी समझो,
पथ के निर्मम पाषाणों पर, युग की चिकनी चट्टानों पर
थम जाय उसे आँसू समझो, बह जाय उसे पानी समझो
हृदय के साथ जो धड़के, उसे अरमान कहते हैं
बसे जो मौन प्राणों में, उसे मेहमान कहते हैं।
चिता के साथ जो ठण्डी पड़े, पहचान वह कैसी?
चले अगले जनम भी जो उसे पहचान कहते हैं।
जिसे बाँधा न जा पाए, उसे मुस्कान कहते हैं।
जिसे टोका न जा पाए, उसे आह्वान कहते हैं।
जिसे पोंछा न जा पाए, वहीं तो है खरा आँसू
जिसे जाना न जा पाए, उसे बलिदान कहते है।
प्रणय से हीन जीवन एक नीरस-सी कहानी है
जिसे मिटना नहीं आता, भला वह क्या जवानी है।
‘पतंगा मिट गया जलकर', भला यह कौन कहता है।
दिए की ज्योति ही जलते पतंगे की निशानी है।
कुसुम-सी कंटकों के बीच में खिलती जवानी है।
डगर की धूल ही प्रत्येक राही की निशानी है।
युगों से सुन रही धरती, युगों से सुन रहा अम्बर ,
हमारी ज़िन्दगी ही एक कविता है, कहानी है ।
भीड़ है, फिर भी डगर सुनसान है।
विश्व परिचित है, मगर अनजान है।
चार आँसू, एक फीकी-सी हँसी
हर बटोही का यही सामान है।
रागिनी अच्दी कि वह जितनी सुहानी हो
वेदना अच्छी कि वह जितनी पुरानी हो
ज़िन्दगी अच्छी कि जितना जोश हो उसमें
मौत अच्छी है कि वह जितनी दिवानी हो
हृदय की बात मत पूछो कि जब आनन्द मिल जाए
किसी कवि को कि जब साकार छवि का छन्द मिल जाए
‘सुनाओ गीत', यह अनुरोध तुम कर तो रही हो, पर
मधुप गाता नहीं है, जब उसे मकरन्द मिल जाए
हवा है साँस किसकी, जो कि इतराई हुई-सी है?
किरण है देह किसकी, जो कि अलसाई हुई-सी है
गगन किसका दुपट्टा है कि लहराया हुआ-सा है।
घटा किसी अलक है जो कि छितराई हुई-सी है
नयन किसके कि सूरज-चाँद इतने जगमगाते हैं।
वचन किसके कि कोयल रट रही, अलि गुनगुनाते हैं।
मधुर श्रृंगार है किसका कि मौसम रँग बदलते हैं।
सितारे रत्न हैं किसके कि इतने जगमगाते हैं।
कली किसकी सहेली है कि इतराई हुई-सी है।
उषा किसकी नज़र है जो कि शरमाई हुई-सी है
शिखर किसके उरज हैं जो कि यों माथा उठाए हैं।
लहर किसकी जवानी है कि उफनाई हुई-सी है।
जवानी चाँद पर आई हुई मालूम होती है
हवा भी आज मदमाई हुई मालूम होती है।
दबी झीनी, गुलाबी, रेशमी मुस्कान ओठों में
किसी की आँख शरमाई हुई मालूम होती है।
मृदुल उर की लता हिलती हुई मालूम होती है।
कली अनुराग की खिलती हुई मालूम होती है।
किसी के रूप को दॅू॔ कौन-सी रंगीन उपमा मैं
कि आँचल में शमा जलती हुई मालूम होती है।
नशीली तान में कोयल मगन मालूम होती है
कि अपनी ज़िन्दगी मुझको चमन मालूम होती है।
निकट ही चाँद बैठा है, पहन गहने सितारों के
मुझे तो आज धरती भी गगन मालूम होती है।
न बोलो जोर से, दीवार के भी कान होते हैं।
मिलन के दीप कुछ ही देर के मेहमान होते हैं।
न कहना भूल करके भी हृदय की बाते दुनिया से
कि दुनिया के हृदय की ठौर पर पाषाण होते हैं।
सिन्धु को अपने हृदय का ज्वार काफी है।
ज़िन्दगी को एक ही आधार काफी है।
एक क्षण ही प्यार से हम मिल सके लेकिन
उम्रभर को एक क्षण का प्यार काफ़ी है।
याद करती हो, यही सम्मान काफी है।
कुछ न बोलो, एक मृदु मुस्कान काफ़ी है।
प्रेरणा की आग तुमने दी जवानी को
ज़िन्दगी भर को यही अहसान काफी है।
कोई है ऐसी बात हवा जो डोल रही
यह भेद प्रकृति के प्राणों को है खोल रही
है प्यार रूप के आराधन का गीत मधुर
चुप-चुप हँसते हैं फूल कि बुलबुल बोल रही
प्राण में ज्वाला, नयन में नीर है।
जिन्दगी तूफ़ान की तसवीर है।
तोड़ सकता है न जिसको वज्र भी
प्यार ऐसी रेशमी जंजीर है।
‘स्वप्न' से कहदो कि वह साकार हो जाए
‘तार' से कहदो कि वह झनकार हो जाए
मैं तुम्हारी सीढ़ियों पर पाँव रखता हूँ
‘रोष' से कहदो कि घुलकर प्यार हो जाए।
बीन वादक की, मगर है रागिनी सबकी
फूल मधुवन का, महकती यामिनी सबकी
प्राण, तुमसे भी तुम्हारा रूप प्यारा है।
चाँद अम्बर का, मगर है चाँदनी सबकी
Copyright © 2021 ramkumarchaturvedichanchal.com - All Rights Reserved.
Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
We use cookies to analyze website traffic and optimize your website experience. By accepting our use of cookies, your data will be aggregated with all other user data.