किसकी जय बोलें भला? किसको करें प्रणाम?
भ्रष्टाचारी भोर है, घोटालों की शाम।
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धनी हुए दुगुने धनी, रंग और भी रंक,
धर्म विवादों से घिरा, राजनीति आतंक।
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हर सपना घायल हुआ, टूटा हर विश्वास,
पतझर ही पतझर मिला, माँगा था मधुमास ।
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कला मनोरंजन हुई, खड्ग हुआ विज्ञान,
नंगी-नंगी सभ्यता, बिका-बिका ईमान।
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मॅहगाई आकाश पर, नैतिकता पाताल,
प्रजातन्त्र मण्डी बना, राजा हुए दलाल ।
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प्यासी खेती पुण्य की, ऊसर बरसा मेह,
सिकुड़ी-सिकुड़ी आत्मा, उभरी-उभरी देह।
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प्यार गली का ठीकरा, रूप हाट का माल,
‘बूढ़ा बंस कबीर का उपजे पूत कमाल' ।
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उगना नए प्रभात का था सूरज का काम,
अखबारों में छप गया लालटेन का नाम ।
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सुरसा जैसी योजना, ज्यों-ज्यों करे प्रसार,
हनुमान जैसा करे, बेकारी विस्तार ।
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बिना पढ़े तो रह गए बिन पानी के कूप,
पढ़े-लिखे बनने लगे अहंकार के स्तूप ।
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गंगा मैली हो गई, देश हुआ बदनाम,
लिख डाली आधी सदी घोटलों के नाम।
सत्ता की घुड़दौड़ का क्या होगा परिणाम?
दल सारे दलदल हुए, घोड़े बिना लगाम ।
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जिनके स्वागत में कभी बिछे करोड़ों नैन,
उनके स्वागत के लिए हथकड़ियाँ बेचैन
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साथ हवा के उड़ गए फ़रमानों के छन्द ।
सदियों पर शासन करे कवि का लिखा प्रबन्ध।
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धन, सत्ता, वैभव, ठसक, सबकुछ तेरे पास।
मेरे हिस्से लेखनी, लिखने को इतिहास॥
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हत भाषा है भाव क्षत, छन्द रहे धिक्कार।
कविता से कविवर बड़े, उनसे बड़ा प्रचार॥
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बिजली ठण्डी-सी लगे, दावानल भी मन्द।
विद्वेषी से पूछिए जलने का आनन्द।
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पैसा, सत्ता, कुर्सियाँ, फोटो और प्रचार।
निरावरणता है कहाँ? ओढ़े हैं अखबार॥
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लाज घेल कर पी गए, हुए स्वार्थ में मग्न ।
शील तुच्छ, सौजन्य लघु, सबसे बड़े कृतघ्न।
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संकट की ही जड़ रहे हर युग में धन धाम।
हम सब तो इन्सान हैं, संकट में हैं राम।।
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अगर बढ़े होते नहीं दाँत और नाखून ।
मन्दिर-मस्ज़िद तक भला कैसे आता खून॥
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चोर-लुटेरे हैं खड़े धन दौलत की राह।
सरकारें हैं छीनतीं जीने का उत्साह।
प्रथम बार तालाब पर देखा तेरा रूप ।
देह धरे जैसे खड़ी सुबह-सुबह की धूप।
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स्वप्न-परी चलकर स्वयम् आई मेरे पास।
नन्दनवन का लिख गई अधरों पर इतिहास।।
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दिशा-दिशा को दे गया न्योता चपल समीर ।
चाँद-कटोरे में निशा बैठी लेकर खीर।
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भॅ॔वरोंवाले नद-नदी किए तैरकर पार।
तेरी आँखों में मगर डूबे बीसों बार।
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कितना भावातीत था, कितना शब्दातीत ।
आँखों से हमने सुना आँखों का संगीत।
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दोनों के तन दूर थे, दोनों के मन पास।
सीता का वनवास था सही राम वनवास।
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परियों जैसी कल्पना, गन्धर्वो से बोल।
हीरे-मोती चकित हैं, कवि कितना अनमोल।
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रातों तक ही ठीक है, दिन में स्वप्न न देख।
पढ़ गाथा संकल्प की, लिख पौरुष के लेख।
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चाँद देख करके उठा सागर में उन्माद ।
जगे पिता के वक्ष में ज्यों बेटे की याद।
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गरुड़ासन से माँगता गरुड़ यही वरदान।
रहें सलामत पंख ये, ऊँची रहे उड़ान॥
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मावस चरण पखारती, पूनम करती प्यार।
नील गगन-सी जिन्दगी पाऊँ बारम्बार।
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पुरखों के ही बीच कल होगा अपना चित्र।
चित्र-चित्र को देखता कैसा दृश्य विचित्र।
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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