थी उमड़ते प्यार जैसी चाँदनी छाई हुई,
था गगन मदहोश-सा थी भूमि अलसाई हुई।।
हट गया सहसा अधर से जाम अधरों का मधुर;
जो नशा सब रात था छाया, सबेरे ढल गया!
चाँद सारी रात मुसकाया, सबेरे ढल गया!
रूप की पूनम बसी थी आँख के आकाश में,
मैं बँधा था दो गुलाबी बाहुओं के पाश में!।
इन्दु को लखकर उठा जो ज्वार उर के सिन्धु में,
हाय, सारी रात लहराया, सबेरे ढल गया!
चाँद सारी रात मुसकाया, सबेरे ढल गया!
स्वप्न सहसा तोड़ डाला भैरवी की तान ने,
ली विदा मुखसे किसी की रेशमी मुसकान ने!
ओस का मोती कली के मखमली-से
गाल परजो कि सारी रात इठलाया, सबेरे ढल गया!
चाँद सारी रात मुसकाया, सबेरे ढल गया!
एक नूतन जागरण की खोज में हूँ।
प्यार के वातावरण की खोज में हूँ।।
हर दिशा गहरी उदासी से भरी है,
हर लहर मन की अँधेरे से घिरी है।
जो कि घन-पूँघट उठाकर मुस्करा दे
ज़िन्दगी की हर दिशा जो जगमगा दे।
हर लहर पर चाँद जो सौ-सौ झुमादे
फिर किसी गोरी किरण की खोज में हूँ।
प्यार के वातावरण की खोज में हूँ।
व्यक्त होने को तड़पता छन्द हूँ मैं
एक नूपुर-सा पड़ा निःस्पंद हूँ मैं।
मस्त भौंरे की तरह मैं गुनगुनाऊँ,
जिन्दगी की हर गली को झनझनाऊँ,
झूमकर जिसमें कि दुनिया को झुमाऊँ,
फिर किसी कोमल चरण की खोज में हूँ।
प्यार के वातावरण की खोज में हूँ॥
उम्र का मधुमास बीता जा रहा है,
रूप का मधुकोष रीता जा रहा है।
चाहता हूँ मैं विजन से दूर जाऊँ,
मालिनों के कोष की शोभा बढ़ाऊँ,
गन्ध से पागल बनूं, पागल बनाऊँ।
पुष्प हूँ, पुष्पाभरण की खोज में हूँ।।
प्यार के वातावरण की खोज में हूँ॥
मैं आज तुम्हारे द्वार नहीं आऊँगा
यह मस्त चाँदनी तुम्हें बुला लाएगी।
रजनीगन्धा की पाँखें थिरक रही हैं,
चम्पा की खिलती कलियाँ महक रही हैं।
झोंको ने इतनी मादक सुरा पिलादी
नभ के तारों की आँखें झपक रही हैं।
जिसकी अँगड़ाई से सागर लहराता,
दूधिया यामिनी तुम्हें बुला लाएगी!
चन्दा बिंदिया पर चम-चम-चम चमकेगा,
किरणें गोरी काया को दुलराएँगी,
मदमस्त हवाएँ अलकों को बिखराकर
भोली-भाली साँसों को बहकाएँगी!
कोयल की बोली नींद चुरा भागेगी,
कामना-कामिनी तुम्हें बुला लाएगी !
यमुना की लहरों पर शशि ने किरणों से
मेरे मन मादक बातें लिख दी हैं।
वृक्षों ने है पत्तों की सेज बिछादी,
लतिकाओं ने उस पर कलियाँ रख दी हैं!
सूने तट पर मैं वंशी बजा रहा हूँ,
रंगीन रागिनी तुम्हें बुला लाएगी!
मैं आज तुम्हारे द्वार नहीं आऊँगा,
यह मस्त चाँदनी तुम्हें बुला लाएगी!
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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