तुम्हें आज अपना हृदय दे रहा हूँ।
हृदय दे रहा हूँ प्रणय दे रहा हूँ।
रगों में सुरा-सिंधू की है रवानी।
महकती हुई है चमन-सी जवानी !
कली ने मुझे मुस्कुराना सिखाया,
मधुप ने सुनाई प्रणय की कहानी
तभी तो सुलगते हुए दोपहर में।
तुम्हें आज शीतल मलय दे रहा हूँ।
कठिन है यहाँ प्यार का प्रण निभाना,
कठिन है हृदय के अहम् को मिटाना!
नहीं जानती है, मगर मूढ़ दुनिया,
लुटाए न लुटता हृदये का खजाना ।
युगों की पराजित धरा पर खड़ा हो
तुम्हें आज अपनी विजय दे रहा हूँ।
मनुज पर यहाँ काल का है नियन्त्रण
किसी भी घड़ी टूट सकता प्रभंजन।
कि हर नाव चलती यहाँ डगमगाती,
हिलोरें उठाकर बुलाता विसर्जन नहीं
जिन्दगी का ठिकाना घड़ी भर,
तुम्हें पर, मिलन का समय दे रहा हूँ!
तुम्हें आज अपना हृदय दे रहा हूँ!
तुम्हें मधुमास की सौगन्ध है दो दिन ठहर जाओ !
अभी ही तो लदी है आम की डाली,
अभी ही तो वही है गन्ध मतवाली;
अभी ही तो उठी है तान पंचम की,
लगी अलि के अधर से फूल की प्याली।
दिए कर लाल जिसने गाल कलियों के
तुम्हें उस हास की सौगंध है, दो दिन ठहर जाओ!
हृदय में हो रही अनजान-सी धड़कन,
रगों में बह रही रंगीन-सी तड़पन!
न जाने किस लिए है खो गई सुधबुध,
न जाने किस नशे में झूमता है मन!
छलकती है उनींदे लोचनों से जो,
तुम्हें उस प्यास की सौगन्ध है, दो दिन ठहर जाओ!
ठहर जाओ, न उमड़ा प्यार ठुकराओ,
न मेरे प्राण का उपहार ठुकराओ !
उधर देखो, लता तरु से लिपटती है।
न यह बढ़ता हुआ भुजहार ठुकराओ!
तुम्हें है आन धरती और सागर की,
तुम्हें आकाश की सौगन्ध है, दो दिन ठहर जाओ!
तुम्हें मधुमास की सौगन्ध है, दो दिन ठहर जाओ!
तुमको रूप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!
तुम हो पूर्णिमा साकार,
मैं हूँ सिन्धु-उर का ज्चार!
दोनों का सनातन मान,
दोनों का सनातन प्यार!
तुम आकाश, मैं पाताल,
तुम खुशहाल, मैं बेहाल;
तुमको चाँदनी का गर्व, मुझको ज्वार का अभिमान!
तुमके रूप का अभिमान
मुझको प्यार का अभिमान!
मुझको तो नहीं मालूम किसी दिन बँध गए थे प्राण,
कैसे हो गई पहचान, तुम अनजान, मैं अनजान?
तुम संगीत की रसधार,
मैं हूँ दर्द का भण्डार;
वीणा को कहाँ मालूम टूटे तार का अभिमान!
तुमको रूप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!
तुम हो देवता सुकुमार, मैं हूँ आरती का दीप,
यों तो दूर हैं हम, प्राण! फिर भी आठ याम समीप!
तुमको चूमती मुसकान,
मेरे घुल रहे हैं प्राण,
तुमको जीत का उन्माद, मुझको हार का अभिमान!
तुमको रूप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!
मिट्टी में मिलें चुपचाप, फूलों की यही तकदीर!
पहने आँसुओं के हार भूलों की यही तकदीर!
तुमको होश, मैं बेहोश,
तुम निर्दोष, मेरा दोष,
जानेगा मरण का सिन्धु जीवन-धार का अभिमान !
तुमको रूप का अभिमान,
मुझको प्यार का अभिमान!
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Hindi poems by Ram Kumar Chaturvedi "Chanchal"
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